2 यूह
यूहन्ना का दूसरा 'आम ख़त
मुसन्निफ़ की पहचान
इस का मुसन्निफ़ यूहन्ना रसूल है। 2 यूहन्ना 1:1 में वह ख़ुद ही बुज़ूर्ग यूहन्ना बतौर बयान करता है। ख़त का उन्वान दूसरा यूहन्ना है और यह उस के तीन ख़ुतूत के सिलसिलों में से दूसरा है जो यूहन्ना रसूल के नाम से हैं। 2 यूहन्ना जिस ख़ास बात पर हमारा ध्यान ले जाता है वह है झूठे उस्ताद जो युहन्ना की कलीसिया के दर्मियान ख़ानाबदोशों की तरह रहकर इज्लाज़ करते ताकि कुछ लोगों को अपनी तरफ़ रूजूअ कर सकें और कलीसिया की मेहमान नवाज़ी का फ़ाइदा उठा सकें जिस से कि उन का मक़्सद हल हो जाए।
लिखे जाने की तारीख़ और जगह
इस के लिखे जाने की तारीख़ तक़रीबन 85 - 95 ईस्वी के बीच है।
लिखे जाने की जगह ग़ालिबन इफ़सुस है।
क़बूल कुनिन्दा पाने वाले
2 यूहन्ना एक ख़त है जो कलीसिया की एक ख़ातून और उस के बच्चों के नाम मुख़ातिब है।
असल मक़सूद
यूहन्ना ने यह दूसरा ख़त उस ख़ातून और उसके बच्चों के ईमानदारी की क़द्रशनासी को दिखाने या जताने के लिए लिखा। और उसकी हौसला अफ़्ज़ाई के लिए भी कि वह ख़ुदावन्द के प्यार और फ़र्मानबरदारी में लगातार चलती रहे। वह उस ख़ातून को झूठे उस्तादों से ख़बरदार और होशियार कराता है और यह इतला‘ देता है कि बहुत जल्द वह उस से मुलाक़ात करेगा। यूहन्ना उस ख़ातून की बहन को भी सलाम लिखता है।
मौज़’अ
ईमान्दार की बसीरत।
बैरूनी ख़ाका
1. सलाम के अलफ़ाज़ — 1:1-3
2. ख़ुदा की महब्बत में होकर सच्चाई को क़ायम रखना — 1:4-11
3. तंबीह — 1:5-11
4. आखरी सलाम — 1:12, 13